Sunday, February 24, 2013

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उम्मीद की जलती लौ को इन हवाओं से बचाता हूँ 
बिखरे हिस्सों को चुन के समेटता हूँ 
ख्वाब टूटने पर दुख होता है पहले भी मालूम था 
पर उस गम मे डूबना नहीं जानता था मैं l 

कोशिश में कमी रही ये समझता हूँ 
इंसान होने की ही कीमत अदा कर रहा हूँ 
दम निकलता है हर ख्वाहिश पर मेरा 
पर उनकी गठरी बनाना भी जानता था मैं l 

किन लहरों को छोड़ आया पीछे देखता हूँ
जहाजो की कतार को याद करता हूँ
कभी मुड़कर देख लेता हूँ साथियों को दूर जाते
पर उन किनारों पर जाना नहीं चाहता था मैं l

आज ठोकर लगी है गिरा हूँ
संभलकर भागना भी जल्द है समझता हूँ
कहती थी दुनिया हसेगी वो मुझ पर
पर उसकी हंसी चुभेगी कभी ये नहीं मानता था मैं l

मैं नहीं कहता था कि दुनिया बदल सकता हूँ
नाही कहता कभी मैं जान दे सकता हूँ
जूनून में पागल या ख़्वाबों में खोया आशिक नहीं हूँ
पर चाहत मेरी झूठी नहीं है ये जानता हूँ मैं l